अतिक्रमण को आम स्वीकृति नही दी जा सकती

■ व्यवस्थापन व मुआवजा यदि चलन बन गया तो विकास योजनाएं ठप्प पड़ जाएगी
■ सर्वहारा का हक़ छीनने वाले भ्रष्ट पार्षद व ठेकेदारनुमा नेता बन रहे गरीबों के पैरोकार
रायगढ़ ( दिनेश मिश्र ) । रायगढ़ में मरीन ड्राइव निर्माण का मामला राजनीतिक मल्ल-युद्ध में तब्दील होता जा रहा है । किसी भी शहर में विकास के प्रत्येक कदम का स्वागत होना चाहिए लेकिन रायगढ़ की तासीर ऐसी है कि यहां विकास का हर प्रयास प्रायः विवाद का विषय बन जाता है । पूर्व कलेक्टर अमित कटारिया के दौर में भी जूटमिल, इंदिरा नगर, कोतरा रोड, बोईरदादर रोड, टी वी टावर रोड एवं एफ सी आई से ट्रांसपोर्ट नगर रोड के चौड़ीकरण के दौरान इस क्षेत्र के प्रभावित लोगों के साथ ही रायगढ़ के नेताओं ने आसमान सर पर उठा लिया था । निर्माण पूरा होने पर आज वर्षों बाद भी इन प्रभावित मोहल्लों के लोग अमित कटारिया को उनके इस कार्य के लिए आदर के साथ याद करते हैं और उन्हें साधुवाद देते नही अघाते ।
किसी भी शहर में बेजा-कब्जा या अतिक्रमण को आम स्वीकृति नही दी जा सकती । अतिक्रमणकारियों के पक्ष में खड़ा होना शहर की नगरीय व्यवस्था व भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है । रायगढ़ का दुर्भाग्य यह है कि यहां चाहे अमीर हो या गरीब , हर किसी ने अतिक्रमण को धंधा बना लिया है । इस प्रवृत्ति ने रायगढ़ के भूगोल को गड्ड-मड्ड करके रख दिया है । बेरोकटोक अतिक्रमण के लिए जहां नगर-निगम व राजस्व विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों की भ्रष्ट कार्यप्रणाली जिम्मेदार है, वहीं पार्षद, बाहुबली छुटभैये से लेकर आला नेता भी कम जवाबदेह नही है । प्रत्येक अवसर को लाभ के सौदे में तौलने के खेल में भाजपा व कांग्रेस, कोई पीछे नही रहा है । रायगढ़ में कतिपय पार्षद सरकारी जमीनों पर कब्जा कर उन्हें बेचने का कारोबार खुलेआम कर रहे हैं तो कई पार्षद अवैध दुकान व मकान बनाकर उनसे किराये के रूप में एक से दो लाख रुपये प्रतिमाह कमा रहे हैं । यह जानकर किसी को आश्चर्य नही होना चाहिए कि अब जमीन दलाल और भू माफिया लाखों रुपये खर्च करके चुनाव जीतकर पार्षद के रूप में टाउन-हॉल की गद्दी पर विराजित हो चुके हैं । निगम में दोनों दलों के ऐसे पार्षदों का एक मजबूत सिंडिकेट बन चुका है । जब कभी भी कोई ईमानदार जन प्रतिनिधि या अधिकारी इनके बेजा वर्चस्व पर चोंट करता है तब ये सब मिलकर तांडव करना शुरू कर देते हैं ।
मरीन-ड्राइव मामले में भी कहानी इससे अलग नही है । इस प्रकरण में यदि अतिक्रमण हटाने के तौर-तरीकों पर प्रश्न उठाये जाते तब तो उसका कोई अर्थ भी होता लेकिन इस मामले में जिस तरह से अराजकता फैलाने की कोशिश की गई उसे कतई स्वीकार नही किया जा सकता है । रायगढ़ विधायक पर इस मामले में जो स्तरहीन निजी हमले किये गए उसे उचित नही ठहराया जा सकता । टॉउन-हॉल में बैठकर जो पार्षद व ठेकेदार नुमा नेता गरीबों के मकान व टॉयलेट निर्माण से लेकर वृद्धावस्था पेंशन राशि मे गड़बड़-झाला करने से परहेज़ नही करते और हर ठेके व सप्लाई में अपनी हिस्सेदारी को लेकर चील-कौव्वों की तरह झपट्टा मारते रहते है , वे लोग जब गरीबों के हित की दुहाई देकर नीति-नियम की बात करते हैं तो इसे राजनैतिक बेशर्मी ही कहा जा सकता है । रायगढ़ शहर ने इस तरह की राजनीति की बड़ी कीमत चुकाई है । अब रायगढ़वासी “अमीर बनाम गरीब” की जुमलेबाज़ी से उकता चुके हैं । पानी सर से ऊपर जा चुका है । अब रायगढ़ के लोग शहर की बेहतरी और विकास के किसी भी प्रयास को इस तरह के थोथे तर्कों से रोके जाने के सख्त विरुद्ध हैं । अतिक्रमण करते समय तो लोग किसी भी कानून की परवाह नही करते हैं लेकिन जब कब्जा हटाया जाता है तो व्यवस्थापन-मुआवजा से लेकर तरह-तरह की क़ानूनबाज़ी करने लगते हैं । अतिक्रमण करना एक आपराधिक कृत्य है । अतः इसके दोषियों को किस बात का व्यवस्थापन व मुआवजा दिया जाना चाहिये ? यदि इसे चलन बना दिया जाएगा तो ” कब्जा करो-मुआवजा/व्यवस्थापन पाओ” की मुहिम चल पड़ेगी और यदि ऐसा हुआ तो इसके आर्थिक बोझ के कारण शहर-हित की कई योजनाएं ठप्प पड़ जाएगी । अतः इसे किसी भी दबाव में आम-चलन बनने नही दिया जा सकता । वास्तविक जरूरतमंदों को शासकीय योजनाओं के तहत वैकल्पिक व्यवस्था की पात्रता है । हद तो तब हो जाती है जबकि बेजा-कब्जा की जमीन पर मार्बल व टाईल्स जड़े दो-दो मंजिला शानदार मकान बनाने वाले लोग कब्जा टूटते ही स्वयं को गरीब व लाचार बताकर न्याय-अन्याय की बातें करने लगते हैं । यह इस शहर का दुर्भाग्य है कि हमारे नेता अपने तात्कालिक राजनीतिक स्वार्थवश अतिक्रमणकारियों की पैरवी करते हुए भावनात्मक भाषणबाजी करके जब तब आंदोलन भड़काते हैं और शहर की बेहतरी के लिए चलाई जा रही विकास योजनाओं पर पलीता लगा देते हैं । शहरवासियों को गरीबों के इन नक़ली पैरोकारों को पहचान कर उनसे मुक्ति पानी होगी अन्यथा हमें शहर विकास को लेकर किसी तरह की मांग करने एवं इन मांगों के पक्ष में सोशल मीडिया में जोरदार तक़रीरें करने का कोई अधिकार नही है । *
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