वोट काटने वाले निर्दलियों पर टिकी है कांग्रेस की उम्मीद

■ ओपी और प्रकाश के व्यक्तित्व पर सिमटी लड़ाई
■ क्या गेम चेंजर बनेगा ” किताब वर्सेस शराब ” जुमला
रायगढ़ । विधानसभा चुनाव में दूसरे दौर का मतदान 17 नवंबर को होने जा रहा है । आज शाम प्रचार थम जाएगा । छोटी-बड़ी सभा , रैलियां , गली-गली भ्रमण और घर-घर दस्तक से मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के बाद मतदाताओं का झुकाव किस ओर है इसकी थाह लेने में विशेषज्ञ जुटे हुए हैं । हमारे रायगढ़ जिले में रायगढ़ विधानसभा हॉट शीट बनी हुई है क्योंकि यहां से भाजपा के प्रत्याशी ओपी चौधरी सीधे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निशाने पर हैं । ओपी चौधरी को चारों तरफ से घेरने में मुख्यमंत्री ने कोई कसर बाकी नही रखी है । फिर भी कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश नायक की सारी उम्मीदें दो निर्दलीय उम्मीदवारों के प्रदर्शन पर टिकी हुई है ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार एक मालदार निर्दलीय उम्मीदवार सीधे सूबे के मुखिया से संचालित हो रहे हैं वहीं दूसरे निर्दलीय उम्मीदवार के पीछे सूबे के मुखिया के अलावा प्रदेश भाजपा के एक कद्दावर नेता का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है । गेम प्लान यह है कि मालदार नेता पैसे व सामाजिक समीकरण के तहत भाजपा के मतों पर सेंधमारी करे तथा दूसरा बागी उम्मीदवार ग्रामीण अंचल में जाति-बिरादरी के नाम पर व भाजपा से पुराने रिश्तों के दम पर भाजपा के प्रतिबद्ध मतों में दस से बारह हजार वोट झटक ले और कांग्रेस अपना परंपरागत वोट पाकर किला फतह कर ले ।
चुनाव में राजनैतिक पैंतरेबाजी व साजिश कोई नई बात नही है परंतु कागजों में तैयार की गई रणनीतियां हूबहू धरातल पर मूर्त रूप ले ले यह निश्चित नही होता है । रायगढ़ विधानसभा में भी कमोबेश यही स्थिति है । शह और मात के तमाम हथकंडों के बावजूद रायगढ़ विधानसभा का चुनाव ओपी चौधरी एवं प्रकाश नायक के व्यक्तित्व एवं उनकी छवि के इर्द-गिर्द आकर केंद्रित हो गया है । ओपी चौधरी पर प्रदेश कांग्रेस नेताओं ने जितने व्यक्तिगत हमले किये उसने ओपी चौधरी के कद को हर बार थोड़ा बड़ा कर दिया है । इधर प्रकाश नायक के विरुद्ध एंटी इनकंबेंसी तथा उनकी व्यक्तिगत कमजोरियों ने कांग्रेस की राह कठिन बना दी है । इससे उबरने के लिए उनकी धर्मपत्नी सुषमा प्रकाश नायक एवं उनके अनुज कैलाश नायक को आगे आकर मोर्चा सम्हालना पड़ा है । विशेषकर सुषमा प्रकाश नायक के ताबड़तोड़ जनसंपर्क से इस प्रतिस्पर्धा में कांग्रेस ने कुछ हद तक कमबैक किया परंतु प्रदेश भाजपा के प्रभावी घोषणा-पत्र ने कांग्रेस को जोरदार झटका दे दिया । महिलाओं के लिए भाजपा के महतारी वंदन योजना को घर-घर पहुंचाने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं ने जिस सक्रियता का परिचय दिया उसने सुषमा प्रकाश नायक के प्रयासों पर लगभग पानी फेर दिया । कांग्रेस को मुकाबले में खड़ा करने हेतु अंततः भूपेश बघेल को कमान अपने हाथ मे लेनी पड़ी । कांग्रेस के असंतुष्ट धड़ों से सी एम हाउस द्वारा लगातार बातचीत व राजधानी बुलाकर मंत्रणा के बावजूद जब बात नही बनी तब स्वयं मुख्यमंत्री को मैदान में उतरना पड़ा । पुसौर में जनसभा के बहाने भाजपा को घेरने के साथ ही अंतिम दिनों के लिए साधन-सुविधा की बड़ी खेप की व्यवस्था किये जाने की चर्चा राजनैतिक हलकों में सुनी गई । इधर भाजपा में विभिन्न धड़ों में असामंजस्य व असहमतियों की चर्चा के बीच भी निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में ओपी के प्रति आकर्षण देखा गया । शुरुआती उथल-पुथल के बाद मध्य तक आते-आते भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को एक्टिवेट करने में औसत रूप से सफल रही । भाजपा ने प्रकाश नायक द्वारा 2008 में जारी किए गए घोषणा पत्र को जनता के समक्ष रखकर बिंदुवार कांग्रेस की वादाखिलाफी व असफलताएं गिनाई । अंत मे ओपी चौधरी ने मास्टर-स्ट्रोक के रूप में अपना सर्वसमावेशी विज़न डॉक्यूमेंट आम जनता के समक्ष स्थानीय घोषणा पत्र के रूप में रख दिया । पूरे प्रचार अभियान के दौरान टीम प्रकाश नायक अपनी उपलब्धियां और भावी रोडमैप बताने की बजाय अधिकांश समय ओपी चौधरी पर व्यक्तिगत आक्षेप करते दिखाई दिए जबकि ओपी चौधरी जनहित के मुद्दों पर फोकस रहे । उनके द्वारा युवा वर्ग के लिए प्रस्तुत कैरियर मार्गदर्शिका पुस्तक विशेष रूप से चर्चा का विषय बना और आम जनता के बीच ‘ किताब वर्सेस शराब ‘ का जुमला स्वतः प्रतिध्वनित होने लगा । इस नारे को गेम चेंजर के रूप में भी देखा जा रहा है ।
कुल मिलाकर इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी का सकारात्मक रवैया कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश नायक के व्यक्तित्व व छवि पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है । लोगों में यह चर्चा साफ सुनी जा रही है कि कलेक्टर रहे ओपी चौधरी की काबिलियत असंदिग्ध है । यदि उन्हें चुना जाएगा तो कुछ अच्छा होने की उम्मीद रहेगी । देखना यह है कि भूपेश बघेल की ताकत और ओपी चौधरी के व्यक्तित्व के बीच ऊंट किस करवट बैठने वाला है ? क्या अंतिम दिनों में बंटने वाले पैसों व शराब का वितरण अब तक आकार ले चुके इस चुनाव में कोई बड़ा फेरबदल कर पायेगा ? यह देखना भी दिलचस्प होगा ।
– दिनेश मिश्र