★ मोदी की सभा बनाम भाजपाइयों का गुटीय सिर फुटौव्वल

★ ग्रामीण नेताओं, मीडिया कर्मियों सहित आम-जनता हुई अव्यवस्था का शिकार
★ कहीं ये अफरा-तफरी ओपी को निपटाने की सुनियोजित साजिश तो नहीं …?
रायगढ़ । प्रतिकूल मौसम और भारी भाजपाई अव्यवस्थाओं के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभामंडल के कारण कोड़ातराई की सभा अभूतपूर्व रूप से सफल रही । उनको सुनने व उनकी एक झलक पाने हेतु जो जनसैलाब उमड़ा , उसने सारे पूर्वानुमानों को ध्वस्त कर दिया । जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने शुरू में ही विशाल जनसमूह से आत्मीयता स्थापित कर ली और फिर उन्होंने भूपेश सरकार की कार्यशैली पर जमकर प्रहार किए । सभा की भारी सफलता से भाजपा बेहद उत्साहित है जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस व मीडिया सहित राजनैतिक विश्लेषक उसके संभावित परिणामों की समीक्षा करने में व्यस्त हैं ।
चूंकि इस सभा को भाजपा के चुनावी अभियान का आगाज़ माना जा रहा है अतः यह उम्मीद की जा रही थी कि मोदीजी इस सभा के माध्यम से कोई सशक्त व उत्प्रेरक संदेश अवश्य देंगे जो भाजपा की चुनावी जीत को सुनिश्चित करने में संजीवनी का काम करेगा लेकिन मोदी की सभा मे भूपेश सरकार के भ्रष्टाचार, वादाखिलाफी, केंद्रीय योजनाओं में रोड़े अटकाने व सनातन विरोध ( हिंदुत्व ) की वही घिसी-पिटी बातें हुईं जिसका बेसुरा राग भाजपाई पिछले एक वर्ष से अलाप रहे हैं और आम-जनता के कानों में जूं तक नही रेंग रही है ।
जहां तक रायगढ़ की सभा के असर का प्रश्न है तो ये कहा जा सकता है कि भीड़ उम्मीद से अधिक हुई किंतु इतनी बड़ी सभा की रूप-रेखा बनाने और विभिन्न व्यवस्थाओं को जमीन पर सुचारू रूप से उतार पाने में भाजपा संगठन बुरी तरह नाकाम रहा । अलग-अलग खेमे के मठाधीशों ने विभिन्न व्यवस्थाओं में अपने पिछलग्गुओं को घुसा कर कार्यक्रम पर कब्ज़ा कर लिया और फिर ऐसी मनमानियां की कि हर कोई भौंचक्क रह गया । जिला भाजपा के नेताओं की सारी कवायद राष्ट्रीय प्रभारियों की चापलूसी, जी-हुजूरी और अपने नंबर बढ़ाने के प्रयासों तक सीमित रही । उनका वश चलता तो वे ओम माथुर, मनसुख मांडविया व अजय जाम्बवाल को बलात उठाकर ले जाते और अपने-अपने खेमे में उनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर देते । भाजपा के ग्रामीण स्तर के नेता पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए थे और थैलीशाहों की जमात संगठन की सिर पर चढ़कर बैठ गई थी । सभा-स्थल में प्रवेश हेतु बनाये गए वी आई पी एंट्री-पास पर कुछ लोग कुंडली मारकर बैठ गए थे और ऐसा बर्ताव कर रहे थे मानो वे एंट्री-पास नही वरन कोई तय-शुदा पुरष्कार वाली लॉटरी की टिकट भीख में दे रहे हों । स्थानीय नेताओं में आपसी फूट, ईर्ष्या व खोट इतनी अधिक थी कि कतिपय वरिष्टजनों के एंट्री-पास अंतिम समय तक दबाकर रखे गए और उन्हें अपने सामने झुकाने का दुष्प्रयास किया गया । आस-पास के गांवों से पिक-अप व ट्रैक्टरों से भीड़ ढुलाई की व्यवस्था तो की गई थी लेकिन सभा-स्थल पर उनकी सुध लेने वाला कोई नही था । सारे नेता किसी तरह मंच पर जगह पाने की तिकडमों व मोदी के साथ फोटो खिंचवाने का अवसर तलाशने में मशगूल थे ताकि बाद में डींगे हाँकी जा सके । उपेक्षा व अव्यवस्था का ये आलम था कि ग्रामीण क्षेत्र के भाजपा पदाधिकारियों, डी डी सी – बी डी सी सहित हज़ारों आम-लोगों को सभा-स्थल से बैरंग लौटना पड़ा जबकि कई रसूखदार शहरी लोग बिना पात्रता के मोदीजी के स्वागत की कतार में खड़े होकर ग्रामीण भाजपाइयों का मुंह चिढ़ा रहे थे ।
जिला भाजपा के कर्ता-धर्ताओं के पास मीडिया संबंधी कोई रणनीति ही नही थी । ऐसा पहली बार हुआ कि मीडिया कर्मियों को एंट्री-पास एवं वाहनों के पास हेतु उन्हें अंतिम समय तक भटकना पड़ा । इस दुरावस्था से खिन्न होकर अनेक पत्रकारों ने सभा-स्थल तक जाना ही उचित नही समझा जबकि कई पत्रकार प्रयास के बावजूद भी वहां तक नही पहुंच सके । जो लोग पहुंच पाए वे एक घूंट पीने के पानी के लिए भी तरस गए । जिला भाजपा के घोषित मीडिया प्रभारियों की स्थिति बेहद दयनीय थी । उनसे सारे अधिकार छीनकर उन्हें हाशिये पर डाल दिया गया था । मीडिया और आम-जनता को सभा संबंधित ब्रीफिंग करने वाला कोई नही था । क्षुब्ध होकर पत्रकारों ने प्रदेश भाजपाध्यक्ष की पत्रकार- वार्ता का बहिष्कार तक कर दिया । ” अंधा – बांटे रेवड़ी, चिन्ह-चिन्ह के देय ” की तर्ज़ पर विज्ञापन की बंदर-बांट की गई । पार्टी के फण्ड से इन नेताओं द्वारा खुद के रिश्ते व संबंध गांठे गए । दबे स्वर में अब इस बात की चर्चा भी हो रही है कि इस बहाने किस भाजपाई ने कितना माल दबा दिया । कहा यह भी जा रहा है कि भाजपा के संभावित उम्मीदवार ओपी चौधरी की चुनावी संभावनाओं को धूमिल करने की कूटनीति के तहत ये सब कुछ योजनाबद्ध ढंग से किया गया है ।
तमाम अफरा-तफरी के बीच सम्पन्न हुई इस सभा से तात्कालिक रूप से भाजपा को यह लाभ तो अवश्य हुआ है कि कार्यकर्ता रिचार्ज हो गए, लेकिन चुनाव को अभी लंबा समय बाकी है । अतः यह जोश कब-तक बरकरार रह पाएगा, यह कहना मुश्किल है । सभा समाप्ति के बाद मोदी के साथ खींचे गए फ़ोटो को मीडिया में वायरल कर टिकट की रेस में बने रहने के प्रयास नए सिरे से उभरें हैं , यह इस बात की चुगली कर रहा है कि भाजपाई दावेदारों के खटराग थमे नही हैं तथा अंदरूनी विवाद व बिखराव अभी और भी अधिक गहरा सकते हैं । मोदी की सभा परिवर्तन का वायस बन पाती है कि नहीं ? इसका उत्तर फिलहाल समय के अधीन है इसलिए हर-तरह के विश्लेषण के बावजूद वक़्त का इंतज़ार तो करना ही होगा ।
- दिनेश मिश्र