समाज में भेदभाव मिटाकर राष्ट्र निर्माण करने वाले संत अघोरेश्वर

आज जन्मोत्सव पर विशेष

रायगढ़। धरती में पाप पुण्य को संतुलित करने पुण्यात्माओं का अवतरण होता है। अघोरेश्वर का अवतरण भी इसी प्रक्रिया की कड़ी मानी जाती है। समाज मे नीतियों सिद्धांतों के अभाव की वजह से मानव जाति के समक्ष अस्तित्व का संकट को मिटाने ईश्वरीय शक्तियां ही महापुरूषों के रूप में अवतरित होती है। विधि विधान के शाश्वत नियमो का संदेश देकर वे युगों युगों तक मानव जाति के लिए पथ प्रदर्शक की भूमिका निर्वहन करती है। इनके अनुशरण से समाज के सामने पतन की स्थिति नही आती। ऐसे ही विकट समय मे जब द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे चारो ओर अज्ञानता का अंधकार फैला था, जगह-जगह शोषण के अवरोध थे, भारत गुलामी की जंजीरो से मुक्त होने के लिये संघर्षरत था वर्षा के अभाव ने देश के किसानो को भूखमरी के कगार पर ला खड़ा किया। हजारो लोग अन्न के अभाव मे मर रहे थे। ऐसे ही संक्रमण काल में वि.स. 1994 के भाद्र पक्ष शुक्ल पक्ष सप्तम 12 सितंबर 1937 को बिहार प्रांत के आरा स्टेशन से 6 मील की दूरी पर स्थित गुंडी ग्राम में एक प्रतिष्ठित क्षत्रिय वंश के भारद्वाज गोत्र मे स्वानाम धन्य श्री बैजनाथ सिंह एवं श्रीमति लखराजी देवी के पुत्र के रूप में एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम भगवान सिंह रखा गया, जो बाद में चलकर अघोरश्वर भगवान राम के नाम से विख्यात हुए अघोरेश्वर भगवान राम जी का आकर्षण परंपरागत विद्यालय मे नहीं रहा। आप बचपन मे ही बाल सखाओं के साथ भजन-कीर्तन मे लीन रहने लगे, सर्वप्रथम अपने गृह ग्राम मे ही शिव मंदिर बनाकर साधना करने लगे, परिवार द्वारा बार-बार घर वापस ले जाने के कारण आप 9 वर्ष की अल्पायु मे ही ग्राम छोड़कर तिर्थाटन हेतु निकल पड़े।
तीर्थाटन के क्रम में आप जगन्नाथपुरी और गया पहुंचे उसके बाद आप बाबा विश्वनाथ के दर्शन हेतु वाराणसी पहुंचे जहां स्वयं माता अन्नपूर्णा एक वृद्ध के रूप में आपके निकट पहुंचकर बड़े स्नेह से पूछी- तुम कहा जाना चाहते हो? आपके द्वारा बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन करने की इच्छा प्रकट करने पर आपको गंगा स्नान कराकर श्री विश्वनाथ जी का पूजन करवाया, तत्पश्चात वृद्धा माता के साथ अन्नपूर्णा मंदिर की ओर गये,वहां दर्शन पूजन के पश्चात माता ने कहा-यहां के कुछ दूरी पर परमहंस साधुओं का आश्रम है, वही चले जाओ, तुम्हारा अभिष्ट सिद्ध होगा, इतना कहकर माता अंर्तध्यान हो गयी उनके निर्देशानुसार ही आप क्री कुण्ड स्थल पहुंचे जुलाई 1951 से किनाराम स्थल मे आप अघोर पंत में दीक्षित होकर साधना मे लग गये, साधना का क्रम में उन्होने विध्यांचल, महड़ौरा, सकलडीहा तथा पहाड़ो की गुफाओं एवं गंगा के कछारो में कठोर साधना कर अपना अभिष्ट प्राप्त कर लिया, सिद्धी की चरमावस्था एवं परमानंद की स्थिति प्राप्त करने के पश्चात आपने समाज सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया, विश्व में मानवीय मूल्यो का अवमूल्य चरम सीमा पर पहुंच रहा था, युवा वर्ग दिग्भ्रमित हो रहा था, मानवता की अगली पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय प्रतीत हो रहा था, समाज में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही थी, निराश्रित वर्ग पददलित हो रहा था। धर्म के नाम पर रूढ़िवादिता समाज मे कुरीतियां बढ़ रही थी, उस दौरान एक ऐसे मंच की आवश्यकता थी जिसमें जाति, धर्म, भाषा, रंग और राष्ट्र की संकुचित भावना से उठकर सदविचार, सत्कर्म और आपसी सहयोग की भावना को प्राथमिकता मिले। अघोरेश्वर भगवान राम जी ने अपनी अपूर्व आध्यात्मिक शक्ति, गहन चिंतनशीलता और लोक कल्याण की अदम्य प्रेरणा से वाराणसी में 21 सितंबर 1961 को सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की जिनमें मानव कल्याण हेतु प्रमुख कार्यक्रम तय किये गये। जिसके अंतर्गत मानव मात्र को भाई समझना, नारी मात्र के लिये मातृभाव रखना, बालक-बालिकाओं के विकास हेतु अनुकूल वातावरण तैयार करना, असहाय तथा उपेक्षित लोगो की सेवा करना, आडंबर रहित धर्म की मूल भावनाओं को जागृत करना तथा सभी मतावलंबियों के विचार विनिमय के लिये एक समान मंच प्रदान करना समाज की कुरीतियों जैसे-तिलक दहेज, छुआछुत और फिजूलखर्ची के उन्मूलन के लिये सामाजिक प्रयास करना आश्रमों की स्थापना एवं समान संस्थाओं से सहयोग करना है। इस प्रकार उन्होने समाज को प्रत्यक्ष लाभ देने हेतु स्वयं को समाज से जोड़ लिया। जनसेवा की दिशा में सबसे पहले समाज व परिवार से उपेक्षित एवं तिरस्कृत कुष्ट रोगियों की सेवा 10 मई 1962 से प्रारंभ किया, आपने बालक-बालिकाओं में उच्च संस्कार भरने एवं उन्हे भारतीय संस्कृति के अनुरूप गढऩे के लिये नर्सरी विद्यालयों की स्थापना की, विवाहों में फिजूलखर्ची को रोकने के लिये आपने बिना तिलक दहेज लिये विवाह के लिये लोगो को प्रेरित किया, विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया तथा रूढ़िवादिता एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष की प्रेरणा जन-जन में प्रवाहित कर एक सभ्य समाज का सृजन किया। 29 नवंबर सन् 1992 को अघोरेश्वर भगवान रामजी को महानिर्माण प्राप्त हुआ वे देश और काल के अनुरूप व्यवस्था पर जो देते है वे राष्ट्र के अनन्य भक्त थे, वे राष्ट्र निर्माण को सर्वोपरि मानते थे।

अघोर पंथ को आत्मदर्शन का माध्यम बना गए अघोरेश्वर

पद नाम की जिन अस्थाई पट्टियों पर मनुष्य अभिमान करता है उसके मर्म को अघोरेश्वर ने समाज के सामने सरल तरीके से रखा। उन्होंने बताया कि जन्म के पहले और मृत्यु के बाद भी आत्मा का अस्तित्व है। आत्मा अपने साथ कर्मो का लेखा लेकर आती है और लेकर जाती है । अघोरेश्वर महाप्रभु इस पंथ को आत्मदर्शन का जरिया बना गए । उन्होंने बताया कि आत्मा अजर अमर है। बनोरा अघोरेश्वर महाप्रभु के वैचारिक पुंज का स्त्रोत है। बनोरा के विचारों की गंगा सामाजिक बुराई को धोने का माध्यम बन गई है। समाज के लिए यह विचारों की पाठशाला है जहां अघोरेश्वर के जीवन की जीवंत प्रस्तुति है।

शिष्य बाबा प्रियदर्शी राम जी…

बाबा प्रियदर्शी राम जी ने अपने परम पूज्य गुरुदेव के महानिर्वाण के पश्चात उनके बनाए 13 सूत्रीय कार्यक्रमों को पूरा करने में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया l बाबा प्रियदर्शी राम जी का जीवन भी अपने गुरु के सद विचारो के प्रसार व मानव मात्र की सेवा की लिए समर्पित है l इसके क्रियान्वन हेतु नए नए आश्रमों की स्थापना कर वे विशाल जनमानस को जोड़ने के कार्य के साथ पीड़ित मानव व समाज के सेवा में जुटे हुए है ।

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