क्या बाहरी ताक़तों के हाथों में खेल रहा है रायगढ़ का कोलता समाज…?

★ भाजपा में फूट डालने के पीछे कांग्रेसी हाथ होने की आशंका
★ समाज का नाम राजनीति में घसीटे जाने पर उठने लगे सवाल
★ भाजपा शासन के दो पूर्व मंत्रियों का नाम संदेह के दायरे में
रायगढ़ । यह सच है कि जातिवाद और जाति के राजनैतिक इस्तेमाल के पक्ष में कोई सभ्य तर्क प्रस्तुत नही किया जा सकता है लेकिन यह भी कटु-सत्य है कि जाति आधारित वोट बैंक ही वर्तमान में राजनीति का नियामक तत्व बना हुआ है । रायगढ़ सभी धर्म , सम्प्रदाय व जाति-वर्गों के साथ मिल-जुलकर जीवन-यापन करने वालों का शांतिप्रिय जिला है । कई तरह के वैचारिक संघर्षों के बावजूद यहां की राजनीति में कभी भी जातिवाद का जहर नही घुला । यह पहला मौका है कि रायगढ़ विधानसभा चुनाव में जातीय आधार पर खींच-तान खुलकर सामने आ रही है । हाल ही में छत्तीसगढ़ कोलता समाज के नाम पर भाजपा के विरोध में जिस तरह से फतवा जारी किया गया , उसने इस संस्कारित समाज की स्वतंत्र सोंच एवं प्रतिष्ठा के साथ ही रायगढ़ के सामाजिक सह-अस्तित्व को गहरा आघात पहुंचाया है ।
सामाजिक आधार पर राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग करना प्रत्येक समाज का मौलिक अधिकार है लेकिन किसी नेता द्वारा अपनी राजनीति चमकाने हेतु पूरे समाज को हाइजैक कर लेने की अनुमति किसी भी समाज का समझदार तबका कभी नही दे सकता । यह एक कडवी सच्चाई है कि राजनीतिक नेता कभी जाती-बिरादरी के हित के लिए नहीं वरन केवल अपनी राजनैतिक-आर्थिक स्वार्थपूर्ति के लिए काम करता है और इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु पूरे समाज की ताकत का बेजा इस्तेमाल करता है । एक समाज मे कई अलग-अलग विचारधारा के लोग शामिल रहते हैं जो कि आपसी सुख-दुख में सहभागिता के लिए एक सामाजिक मंच में एकत्र होते हैं । सामाजिक कार्यों से इतर वे अपने राजनैतिक तथा अन्य निर्णय अपने-अपने स्वतंत्र विवेक से लेते हैं । ऐसे पूरे समाज के नाम पर किसी के द्वारा अमर्यादित ढंग से कोई राजनैतिक फतवा जारी करना पूरे समाज के सम्मान व प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने जैसा काम है । यह समाज के द्वारा विश्वास के साथ सौंपे गए पद और अधिकार का दुरुपयोग कहा जायेगा । समाज के वरिष्ठजन व बुद्धिजीवी तबका इस तरह के क्रियाकलापों के पक्ष में कभी नही रहता । किसी भी समाज के पदाधिकारियों को अपनी लक्ष्मण-रेखा का भलीभांति ज्ञान होना चाहिए । उन्हें हर समय इस बात के लिए सचेत रहना चाहिए कि सामाजिक संगठन ने उन्हें केवल सामाजिक कार्यों के लिए अधिकृत किया है ना कि राजनैतिक रोटी सेंकने के लिए !
रायगढ़ का कोलता समाज एक सुसंस्कारित , सुशिक्षित एवं सभ्य समाज है । इस अंचल के विकास में कोलता समाज ने अन्य समाजों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण सहभागिता दर्ज की है । रायगढ़ विधानसभा में कोलता समाज संख्या की दृष्टि से एक बड़ा समाज है । अतः कांग्रेस एवं भाजपा दोनों ही दलों में उनके टिकट के दावे को दरकिनार नही किया जा सकता लेकिन चुनावी सफलता के लिए केवल जातिगत हठधर्मिता को संस्कारजनित आचरण की कसौटी पर उचित भी नही ठहराया जा सकता । साथ ही चुनावी सफलता के लिए सभी समाजों को साथ लेने की प्रवृत्ति व क्षमता विकसित करनी होती है । दुर्भाग्य से कोलता समाज के इन कथित राजनीतिक उद्धारकों में से किसी ने अपने समाज को राजनैतिक-आर्थिक रूप से आगे बढ़ाने में कभी भी रुचि नही दिखाई । इन्हें जब भी अवसर मिला , ये लोग केवल आत्म-केंद्रित उपलब्धियों तक ही सीमित रहे । समाज को मजबूती से खड़ा करने अथवा चेतना सम्पन्न बनाने का कोई भी सार्थक प्रयास इनके द्वारा अब तक नही किया गया है । हर चुनाव के समय जातीय भावनाओं को उभारकर समाज के सीधे-सादे लोगों को आगे कर दिया जाता है और अंत मे अपनी राजनैतिक स्वार्थपूर्ति हेतु कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में समाज के लोगों का ध्रुवीकरण का दुष्प्रयास किया जाता है । इसके पीछे इनकी निजी शुभ-लाभ के एजेंडे काम करते हैं ।
वर्तमान में छत्तीसगढ़ कोलता समाज की संभागीय इकाई के नाम पर जिस तरह से भाजपा का एकतरफा विरोध करते हुए जिस ढंग से फतवा जारी किया गया है वह कई तरह के संदेहों को जन्म देता है । कोलता समाज के भीतर ही यह प्रश्न किया जाने लगा है कि समाज के संभागीय अध्यक्ष के रूप में इसी सप्ताह रत्थु गुप्ता ने पदभार ग्रहण किया है तो फिर ललित साहा द्वारा संभागीय अध्यक्ष के रूप में पत्र कैसे जारी किया गया ? दबे स्वर में यह भी पूछा जा रहा है कि टिकट का दावा जब दोनों दलों में किया गया है तो केवल भाजपा के खिलाफ ही सामाजिक स्तर पर फरमान जारी करने का अधिकार किसने दिया ? पत्र के एकांगी भाजपा विरोध की दिशा ने इन चर्चाओं को बल दिया है कि यह सब कुछ कांग्रेस के इशारे पर किया जा रहा है । दूसरी ओर यह आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि इस पूरे एपिसोड के पीछे भाजपा का एक ताक़तवर धड़ा काम कर रहा है । भाजपा का यह गुट अपना परंपरागत वर्चस्व कायम रखने हेतु ‘ फूट डालो-राज करो ‘ की नीति के तहत सुनियोजित ढंग से कोलता समाज को लगातार उकसाने में जुटा हुआ है । इस खेल में पर्दे के पीछे से भाजपा के दो बड़े पूर्व केबिनेट मंत्रियों के सक्रिय होने की चर्चा भी चटखारे लेकर की जा रही है । वास्तविकता चाहे जो भी हो लेकिन यह तो तय है कि कोलता समाज के कंधों पर बंदूक रखकर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने की कोशिश किसी ना किसी के द्वारा जरूर की जा रही है । इस षड्यंत्रकारी राजनीति में कोलता समाज के जिन चेहरों को सामने लाया गया है, उनका व्यक्तित्व व विश्वसनीयता इन विवादों में पड़कर खंडित जरूर हो रही है । यदि समय रहते समाज के परिपक्व व बौद्धिक तबके ने समाज के नाम पर राजनीतिक रोटी सेंकने के प्रयासों को हतोत्साहित नही किया तो पूरे समाज को दूसरे धनवान ताक़तों के हाथों में खेलने के आरोपों से नही बचाया जा सकेगा ।
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दिनेश मिश्र