जारी है भाजपाईयों का आत्मघाती कठपुतली नृत्य

★ विनाश की राह पर कांग्रेस

★ समाजसेवी और मीडियाकर भी देखने लगे मुंगेरीलाल के हसीन सपने

रायगढ़ । छत्तीसगढ़ इस समय विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। स्वाभाविक रूप से अब राजनीतिक शतरंज की बिसातें बिछने लगी हैं। राजनीतिक दल बूथ की बैठकों, जनसम्पर्क अभियानों एवं सभाओं आदि के द्वारा सत्ता में वापसी के लिये जमीन-आसमान एक किये हुये हैं। राजनीतिक प्रहसन का यह दृश्य कांग्रेस व भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों में समान रूप से दिखाई पड़ रहा है।

जहां तक रायगढ़ जिले में भाजपाई राजनीति का सवाल है तो पिछले चुनाव में कांग्रेस के हाथों शर्मनाक पराजय झेल चुकी भारतीय जनता पार्टी अब तक अपने बिखरे ताने-बाने को फिर से खड़ा करने में ही जुटी हुई है। गत विधानसभा चुनाव में रायगढ़ जिले में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। इस पराजय ने पहले से मौजूद गुटबंदी और आपसी कलह को सतह पर ला दिया। स्थिति जूतम पैजार तक पहुंच गई। पार्टी को इस स्थिति से उबारने हेतु प्रदेश आलाकमान ने संगठन में आमूल-चूल परिवर्तन करते हुये जिले का नेतृत्व युवा हाथों में सौंप दिया लेकिन हालात सुलझने की बजाय और अधिक उलझ गये। दरअसल बदलाव की बहार में कार्यसमिति के गठन के दौरान पार्टी की दुर्गति के लिये जिम्मेदार मठाधीशों की अंगुली पकड़कर तृतीय व चतुर्थ पंक्ति के कार्यकर्ता संगठन में पदाधिकारी बन बैठे और पद पाकर इठलाने लगे। उम्मीद की जा रही थी कि ऊर्जा से भरे नये रंगरूट विपक्षी संघर्ष को मजबूती देंगे परंतु वास्तविकता इसके विपरीत निकली। विभिन्न गुटों के कंधों पर सवार होकर पदों तक पहुंचने वाले ये अपरिपक्व सिपहसालार तो काठ के मोहरे साबित हुये। इन्होंने गुटबंदी, स्वेच्छाचारिता व आपसी खींचतान की स्तरहीन प्रस्तुति देकर भाजपा की साख को बट्टा लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनके कान खींचकर इनको नियंत्रित करने वाले हाथ नदारद रहे। बार-बार पुनर्गठन के बावजूद संगठन का जो चेहरा सामने आया वह पहले की तुलना में जियादा बदसूरत , प्रभावहीन व असंतुलित निकला। किसी भी मुद्दे पर एकजुट होकर सत्ता का प्रतिकार करना तो दूर की बात है यदि ओ पी चौधरी न आये तो ये लोग एक छत के नीचे बैठना तक पसंद नहीं करते। रही-सही कसर विधानसभा हेतु टिकिट की दावेदारी ने पूरी कर दी है। प्रभावी नियंत्रण के आभाव में विधानसभा चुनाव हेतु भाजपाई दावेदारों की फेहरिस्त हर नये दिन के साथ लम्बी होती जा रही है। अपरिपक्व व महत्वाकांक्षा से लबरेज छूटभैय्ये भाजपाइयों की नयी जमात दावेदारी की रेस में बेलगाम होकर सरपट दौड़ रही है। रायगढ़ में अग्रवाल, कोल्ता, ब्राम्हण और पटेल समुदाय का पैसे-कौड़ी से सम्पन्न हर नेता टिकिट का दावेदार है, चाहे वह विधानसभा क्षेत्र की सीमा, राजनीतिक स्थिति, मुद्दों व तासीर से परिचित हो अथवा न हो। फिसड्डी से फिसड्डी कार्यकर्ता पूंजी के दम पर धार्मिक व सार्वजनिक आयोजनों, मीडिया, विज्ञापन, फ्लेक्स व होर्डिंग्स में पैसा खर्चा करके जिस ढिढता के साथ दावेदारी की घोड़ी पर सवार है ,उसने भाजपा को पदों की मंडी में तब्दील कर दिया है। इस उठापटक ने जहां भाजपा के अनुशासन को तार-तार किया है वहीं पार्टी की स्थिति को हास्यास्पद बना कर रख दिया है।

सत्तारूढ़ कांग्रेस की स्थिति भी उपलब्द्धि शून्यता व आपसी कलह के कारण जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है। विधायक का पूरा कार्यकाल अप्रिय विवादों व आत्मकेंद्रित स्वार्थपूर्ति में निकल गया। नगरनिगम अव्यवस्थओं व विवादों का गढ़ बन गया है। खाओ-पियो ऐश करो मितरां की तर्ज पर सत्ता का हर कार्य संचालित होता दिखाई पड़ रहा है। करना है सो कर ले-भरना है सो भर ले कांग्रेसियों का मूलमंत्र बन गया है। वादा-खिलाफी और भ्रष्टाचार ही शासन की नीति बन गयी है। बिना लेन-देन के कोई भी कार्य सम्पादित नहीं हो रहा है। बातें तो बड़ी-बड़ी की गयीं लेकिन काम ढ़ेले भर का नहीं हुआ। कांग्रेसियों की सारी कवायद भाजपा शासन द्वारा किये गये कार्यों पर सुघ्घर रईगढ़ का चमकता हुआ बोर्ड चस्पा करके झूठा श्रेय लेने तक ही सीमित रहा है। यहां भी दावेदार पूंजी व जातीय घोड़े पर सवार हैं। पूंजी के दम पर खरीदे हुये कार्यकर्ताओं को टुकड़ी व सार्वजनिक कार्यक्रमों में चन्दा देकर मुख्य अतिथि बनने तथा फ्लेक्स व विज्ञपनों के दम पर सुर्खियां हासिल करने की होड़ कांग्रेस में भी भाजपा की तर्ज पर ही बदस्तूर जारी है। दोनों ही दलों में पार्टी को सींचने वाले लोग इस अनैतिक प्रतिस्पर्धा के कारण दुबककर हाशिये पर बैठने को मजबूर हैं।

दोनों प्रमुख दलों की स्थिति को देखकर कई पूंजीपति समाजसेवी का मुखौटा पहनकर विधायक बनने को लालायित हो गये हैं। साथ ही कतिपय मीडिया कर्मी भी लगे हाथ इस अंधी दौड़ में शामिल हो गये हैं। क्षेत्रवासी हतप्रभ होकर यह सब देखने को मजबूर हैं। कांग्रेस और भाजपा के अलावा जनता के समक्ष कोई विकल्प ही नहीं है लिहाजा अब इंतजार इस बात का है कि दोनों दलों में से किसे टिकिट मिलती है ?

दिनेश मिश्र

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