★ प्रभु श्रीराम की कर्म भूमि है छत्तीसगढ़

आइये छत्तीसगढ़ में रामराज्य स्थापना हेतु संघर्ष में योगदान करें……

हमारे छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास, यहाँ की सभ्यता और संस्कृति न केवल प्राचीनतम है वरन बेहद समृद्ध भी है। रामधारीसिंह दिनकर जी अपनी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय में साधार दावा किया है कि भारत में आदमी का पहले-पहल जन्म विंध्याचल पर्वत के दक्षिण में अर्थात वर्तमान छत्तीसगढ़ के हिस्से में हुआ था। पुराकथाओं, पौराणिक संदर्भों तथा पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर विद्वानों का यह निष्कर्ष है कि प्राचीन धर्मग्रंथों में दक्षिण कौशल के रूप में विख्यात क्षेत्र वर्तमान छत्तीसगढ़ अंचल ही है। उत्तर कौशल अयोधया के आस-पास का प्रदेश है जबकि छत्तीसगढ़ का क्षेत्र प्रचीन दक्षिण कौशल है। जानकारों का मत है कि दक्षिण कौशल राज्य में भानुमंत नामक राजा हुये। बिलासपुर जिले में मल्लार गांव से 16 किलोमीटर दूर स्थित कोसल नामक गाँव उनकी राजधानी थी। इन्हीं भानुमंत राजा की पुत्री कौशल्या माता थी जिनका विवाह राजा दशरथ से हुआ। इस प्रकार छत्तीसगढ़ प्रभु श्री रामजी का ननिहाल है।

इतिहासकार बताते हैं कि रामायण काल में उल्लेखित दंडकारण्य वास्तव में सरगुजा, सिहावा, केसकाल, कोंटा सहित अधिकांश बस्तर तथा मध्यप्रदेश, उड़ीसा व आंध्रप्रदेश का कुछ हिस्सा रहा है। यहां ऋषि, आर्य,अनार्य,वानर,ऋक्ष,सुर,असुर,नाग,राक्षस,शबर, निषाद,यक्ष सहित अनेक वीरों की बस्तियां थी। बस्तर क्षेत्र के दंडक जनपद के राजा ने राक्षसों के कुल गुरु शुक्राचार्य की पुत्री पर कुदृष्टि डाली थी। शुक्राचार्य के प्रकोप से राजा दंड का वैभवशाली राज समाप्त हो गया। कालांतर में इसी बस्तर क्षेत्र को रावण की बहन सूर्पनखा व योद्धा खरदूषण ने अपना उपनिवेश बना लिया। आगे जाकर यही दंडकारण्य (बस्तर) प्रभु राम जी का कर्म क्षेत्र रहा। पौराणिक इतिहास बताता है कि इसी जगह (बस्तर-दंडकारण्य) पर देवासुर संग्राम हुआ था। जिसमें आततायी राक्षस शम्बासुर ने इंद्र को युद्ध के लिये ललकारा। इस युद्ध में शम्बासुर की ओर से रावण तथा इंद्र की ओर से राजा दशरथ ने भाग लिया था। इस युद्ध में यद्यपि शम्बासुर मारा गया व देवताओं की विजय हई लेकिन राजा दशरथ भी गंभीर रूप से घायल हुये थे जिनकी प्राणरक्षा कैकयी ने की थी फलस्वरूप उन्हें राजा दशरथ से दो वर प्राप्त हुए थे। इन्हीं वर के बदले बाद में कैकयी ने अवसर देखकर रामजी के लिये 14 वर्ष का वनवास और भरत जी के लिये राजगद्दी मांगी थी।

राम वन गमन शोध संस्थान के अनुसार वनवास काल के दौरान रामजी, माता सीता व लक्ष्मण जी ने चित्रकूट से पन्ना, सतना, शहडोल, सीधी होते हुये कोरिया-सरगुजा क्षेत्र के सीतामढ़ी-हरचौका से छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया। जलमार्ग से कोटडोला के बाद छतोड़ा आश्रम आये। बाद में सोनहट, बैंकुठपुर स्थित देवगढ़, सूरजपुर, विश्रामपुर, मरहट्टा रकसगंडा,रामगढ़, महेशपुर के रास्ते दंतोली आश्रम मैनपाट पहुंचे। आगे महारानीपुर, पम्पापुर, किलकिला, पुजारीपाली सहित छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों के भ्रमण करते हुये धमतरी जिले के सिहावा आश्रम पहुंचे, जिसे ऋषि विश्वामित्र ने सप्तऋषियों का केंद्र बना रखा था। इस दौरान उन्होंने ने विभिन्न ऋषियों के आश्रम में रहकर उनका सानिध्य प्राप्त किया तथा आततायी राक्षसों का बड़े पैमाने में वध कर क्षेत्र का उद्धार किया।

शिवरीनारायण के विशाल भूभाग में उन दिनों एक शुद्र वीर राजा शबर का राज था। राजा शबर की पुत्री शबरी सात्विक व विदुषी महिला थी। अपनी शादी में मेहमान भोज हेतु बड़ी संख्या में पशुबलि होने की बात से दुखी होकर वह राजधानी शिवरीनारायण से सुदूर वनों की ओर भाग गयी। अपने राज्य से दूर मतंग ऋषि के आश्रम में उसे शरण मिली। यहीं पर उन्होंने रामजी को अपने जूठे बेर खिलाये थे। इसी स्थान पर रामजी ने शबरी को नवधा भक्ति की महिमा बतायी थी तथा शबरी को माता का स्थान देकर प्रतिष्ठित किया था।

जब सिहावा में भगवान रामजी का चौमासा आरम्भ हुआ तब ऋषियों ने एक महायज्ञ आरंभ किया जिसमें महर्षि वशिष्ठ,वामदेव,जमदग्नि,विश्वामित्र,भारद्वाज, गौतम, वाल्मीकि, लोमस प्रभृति ऋषिगण पधारे थे। यहीं पर ऋषिमुनियों ने राम जी को दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये थे। सिहावा से केशकाल होकर रामजी बस्तर के क्षेत्र में प्रविष्ट हुये
और कोंटा सहित पूरे दंडकारण्य का भ्रमण किया। भ्रमण के दौरान रामजी ने वीरता व प्रेम की ऐसी गंगा बहायी जिससे निषाद, शुद्र, जनजाति वीर, गिद्धराज जटायु सहित सभी वीर रामजी के पक्ष में खड़े हो गये। इस दौरान राम जी ने ताटका, सुबाहु प्रभृति, खरदूषण-त्रिशरा व इनकी चौदह हजार वीरों की सेना का वध करके क्षेत्र को राक्षसों के आतंक से मुक्त किया। यहीं गीदम में गिद्धराज जटायु से रामजी की भेंट हई। सीताजी के अपहरण के दौरान इन्हीं गिद्धराज जटायु जी ने रावण से भीषण संघर्ष किया और मृत्यु से पूर्व रामजी को अपहरण की सूचना दी। गीदम के गदबा जनजाति के लोग स्वयं को गिद्ध राज जटायु का वंशज मानते हैं। इसी गदबा व कमार जनजाति के वीरों ने प्रभु राम जी, माता सीता जी और प्रभु लक्ष्मण जी की वनवास काल में पूर्ण सुरक्षा की जिम्मेदारी उठायी थी। स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ की पुण्य भूमि में रामजी ने अरण्य वास के 10 वर्ष से अधिक का समय कर्म क्षेत्र की तरह व्यतीत किया। जो रामकथा में अरण्य कांड के रूप में उल्लेखित है। रामकथा हर भारतवासी के हृदय में बसी हुई है लेकिन छत्तीसगढ़ के जन जीवन में विशेषतः यह विभिन्न रूपों में व्याप्त है। आइये इस पावनभूमि ( जहां प्रभु राम- सीता व लखन जी के चरणकमल पड़े ) की पवित्र माटी को वंदन करें और छत्तीसगढ़ में रामराज की स्थापना में अपना योगदान करें।

मुकेश जैन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *