थम सा गया है रायगढ़ शहर का विकास….!निगम में कमजोर पड़ती पकड़ “वाटर-लू” साबित होगी विधायक के लिए

कहीं आमने-सामने तो नही आ गया मंत्री उमेश व विधायक खेमा…?

रायगढ़।विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहा है , भाजपा और कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोप तेज़ होने लगे हैं । भाजपा के लोग जहां विधायक प्रकाश नायक को निकम्मा साबित करने हेतु नित नए मुद्दे उछाल रहे हैं वहीं कांग्रेस आंकड़ेबाजी द्वारा उन्हें विकास दूत निरूपित कर रही है । राजनीतिक बयान बाज़ी के अपने राजनीतिक निहितार्थ होते हैं लेकिन इन सबके बीच तीन वर्ष से अधिक का कार्यकाल पूर्ण कर चुके प्रकाश नायक से उनके कार्यकाल का तुलनात्मक लेखा-जोखा लिया जाना समय की मांग है ।

भाजपा शासन के पंद्रह वर्ष के कार्यकाल में मंत्री-विधायकों, नौकरशाहों व भ्रष्ट तत्वों के गठजोड़ का आरोप तो अवश्य लगा किंतु इन आरोपों से परे यह भी सच है कि इस दौरान रायगढ़ शहर सहित पूरे अंचल में चौतरफा विकास हुआ । केलो नदी पर पांच नए पुल, वृहत केलो बांध परियोजना, मेडिकल कॉलेज, वृहत पेयजल आवर्द्धन योजना, सूरजगढ़-नदीगांव पुल, निर्माणाधीन सपनाई जलाशय योजना,पुसौर और सरिया में कॉलेज की स्थापना, बड़ी संख्या में स्कूलों का उन्नयन, रायगढ़-जामगांव, छतामुडा-सारंगढ़ सड़क का निर्माण जैसे बड़े-बड़े व उल्लेखनीय कार्यों ने आकार लिया । इसके साथ ही शहर में रामनिवास टॉकीज रोड पर ओवर-ब्रिज, शहर में बीस से अधिक सड़कों का चौड़ीकरण व निर्माण, केलो नदी के दोनों छोर पर मरीन-ड्राइव, बाग-बगीचे, विभिन्न चौराहों का सौंदर्यीकरण व महापुरुषों की मूर्ति-स्थापना, गणेश तालाब व निकले महादेव मंदिर तालाब का सौंदर्यीकरण, सांस्कृतिक भवन, ट्रांसपोर्ट-नगर, शहर में वैकल्पिक मार्गों का निर्माण, महिला समृद्धि बाजार सहित बड़ी संख्या में दुकानों व सामुदायिक भवनों का निर्माण जैसे कार्यों ने औद्योगिकरण के दबाव में दम तोड़ रहे इस शहर की काया ही पलट कर रख दी ।

भाजपा शासन के इस उपलब्धि भरे कार्यकाल के आईने में यदि मौजूदा विधायक प्रकाश नायक के कार्यकाल को तौला जाय तो यह कहने में विवश होना पड़ेगा कि रायगढ़ विकास के लिहाज से प्रकाश की झोली लगभग खाली ही है । रायगढ़ शहर के विकास की सारी कवायद भाजपा सरकार के दौरान आकार ले चुके निर्माणों में ” सुग्घर-रइगढ़ ” का लेबल चस्पा करके भ्रामक वाह-वाही लेने तक सीमित दिखाई पड़ती है । यद्यपि पूर्व-निगमायुक्त आशुतोष पांडेय के प्रयासों से शहर की सफाई व्यवस्था में कुछ सुधार अवश्य हुआ है किंतु शेष अन्य मान-बिंदुओं पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि रायगढ़ शहर का विकास लगभग थम सा गया है । कांग्रेस इस अवधि में खर्च किये गए पैसों का आंकड़ा सामने रखकर भले ही दावा करे लेकिन वास्तविकता ये है कि एक भी “माइल-स्टोन” काम या उपलब्धि अब तक श्री नायक के खाते में दर्ज नही हो पाई है ।

लॉक-डाउन का यातायात विहीन लंबा समय मिलने के बावजूद भाजपाई शासन के दौरान आरम्भ हुये महत्वाकांक्षी पेयजल आवर्द्धन योजना के कार्य को भी यह सरकार अब तक पूरा नही कर पाई है । निगम की लचर कार्यशैली के कारण यह योजना शहरवासियों के लिए जी का जंजाल बन गई है । सड़कें आज बनी और थोड़े समय बाद ही पाइप लाइन बिछाने हेतु पुनः खोद दी गई । सीवरेज वाटर ट्रीटमेन्ट प्लांट भी ठोस कार्य योजना के अभाव में अर्थहीन व खर्चीला सौदा बनकर अव्यवस्थित ढंग से चल रही है । पहले तो इस कार्य हेतु मरीन-ड्राइव की नई सड़क को आधी दूरी तक खोदकर बर्बाद कर दिया गया तथा बीच मे ही कार्ययोजना को बदल दिया गया । इस नई योजना के तहत भारी खर्च करके केलोनदी पर निर्मित घाटों को तोड़ दिया गया है । इसे जनता के पैसों की दुरुपयोग के सिवाय और क्या कहा जा सकता है ? धाकड़ कहे जाने वाले कलेक्टर भीम सिंह भी शहर-विकास के मामले में ‘एक कदम आगे और दो-कदम पीछे ‘ की तर्ज़ पर काम करने को विवश दिखाई पड़ते हैं । बीच शहर में यातायात व्यवस्थित करने हेतु उन्होंने सड़क-चौड़ीकरण की घोषणाएं तो दमदारी से की लेकिन जब क्रियान्वयन की बारी आई तो उनका हौसला जवाब दे गया तथा पूरा मामला टाँय-टाँय फिस्स हो गया । अंततः निगम कार्यालय से गांधी पुतला तक मौजूदा सड़क को यथावत रखते हुए इसमें केवल डिवाइडर बनाकर उन्होंने पिंड छुड़ा लिय।रामनिवास टाकीज से गांधी पुतला तक घोषणा के बावजूद चौड़ीकरण तो दूर वे बिजली का खम्बा तक नही हटा पाये। यही हाल प्रभावशाली लोगों के अतिक्रमण हटाने के मामले में भी है । शहर के बड़े नालों व तालाबों के उन्नयन की बात भी बढ़-चढ़ कर की गई, सड़क पर उतरकर बहुप्रचारित मैराथन मुआयना किया गया जबकि काम तो रत्तीभर भी नही हुआ । खेलमंत्री उमेश पटेल ने स्थानीय स्टेडियम को राष्ट्रीय स्तर के समकक्ष बनाये जाने हेतु विभागीय सचिव को रायगढ़ भेजा और खूब सुर्खियां बटोरी लेकिन परिणाम यहां पर भी सिफर ही रहा । के .आई .टी . के संदर्भ में भी उन्होंने बड़े वायदे किये थे किंतु वो केवल वायदे ही बनकर रह गए । स्थिति यह है कि कांग्रेस शहर विकास के मामले में “नौ दिन में ढाई कोस” चलने का दावा करने के हालात में भी नही है ।

इधर नगर-निगम में काबिज कांग्रेस की शहर सरकार ने निगम को विवादों का अखाड़ा बनाकर रही-सही कसर पूरी कर दी है । कभी एम आई सी में विभाग बंटवारे को लेकर विवाद तो कभी सभापति और आयुक्त के बीच एक-दूसरे को देख लेने का झगड़ा, कभी वित्त प्रभारी द्वारा सदन में बजट पेश करने से इनकार कर देना तो कभी एम आई सी में बदलाव को लेकर महापौर और सभापति का सिर-फुटौव्वल , कभी एम आई सी से स्वीकृत हो चुके कार्यों को विधायक प्रकाश नायक द्वारा रोककर प्राथमिकता बदल देना तो कभी कांग्रेस की महिला नेत्रियों का आपस मे जूतम-पैजार आदि घटनाएं कांग्रेस के अनियंत्रित भीतरी कलह की कहानी साफ-साफ कह रही है । विधायक, महापौर एवं सभापति के आपसी टकराव की बहुत बड़ी कीमत अदा कर रहा है यह शहर । यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि हर बार इन विवादों का निबटारा स्थानीय विधायक प्रकाश नायक की बजाय खरसिया विधायक उमेश पटेल के दरबार मे पहुंचकर ही होता है । इस तथ्य को राजनैतिक हलकों में शहर की राजनीति पर प्रकाश नायक की कमजोर पकड़ के रूप में देखा जा रहा है । यह भी चर्चा है कि पूरा मामला मंत्री उमेश पटेल गुट व विधायक प्रकाश नायक गुट के बीच छिड़ी गुटीय लड़ाई का परिणाम है । निगम के जन प्रतिनिधियों व सरकारी अधिकारियों के बीच बढ़ते टकराव तथा निगम में पैसों की कमी ने विकास के रास्तों को और भी दूभर बना दिया है ।

हालात चाहे जो भी हों लेकिन शहर में विकास अवरुद्ध हो जाने का मामला अब जोर पकड़ने लगा है । चुनावी माहौल नज़दीक आता देखकर जहां विपक्ष लगातार हमलावर हो रहा है वहीं कांग्रेस के भीतर भी प्रकाश नायक के प्रतिस्पर्धी दावेदार नेपथ्य से विरोधों को हवा दे रहे हैं । डॉ राजू अग्रवाल के खामोश हो जाने पर भी प्रकाश नायक के लिए मैदान खाली नही हो गया है । तेज़-तर्रार व लोकप्रिय सभापति जयंत ठेठवार, जिला पंचायत सदस्य रह चुके वासुदेव यादव, मंत्री खेमे के दिलीप पांडेय व नगेन्द्र नेगी, सक्रिय नेता अनिल अग्रवाल चीकू एवं धनपति अशोक अग्रवाल के राजनैतिक कदम-ताल उनके दावेदारी की ओर ही इंगित कर रहे हैं । इधर बलबीर शर्मा व महापौर जानकी काटजू भी अवसर की ताक में बैठे नज़र आ रहे हैं । विकास की दौड़ में रायगढ़ के पिछड़ जाने का जनाक्रोश एवं रायगढ़ शहर की राजनीति में प्रकाश नायक की कमजोर पड़ती पकड़ उनकी चुनावी संभावनाओं पर पानी फेर सकती है । रायगढ़ नगर-निगम पूरी रायगढ़ विधान सभा का लगभग चालीस प्रतिशत हिस्सा है। अतः समय रहते इन शहरी चुनौतियों से यदि प्रकाश नायक खुद को नही उबार पाए तो रायगढ़ शहर की राजनीति उनके लिए निश्चित ही “वाटर-लू” साबित होगी । दिनेश मिश्र

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