◆ निगम चुनाव : क्या मिल सकेगा मिली-जुली कंपनी के भ्रष्ट-राज से छुटकारा ?

◆ कोई कार्रवाई नहीं हुई पुराने घपले-घोटालों पर, दोषी अब बन गये बड़े नेता
रायगढ़ । नगर-निगम का एक और चुनाव नजदीक आ गया है और शहरवासी फिर एक बार अपने विकास-दूतों का चयन करने जा रहे हैं। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या इस चुनाव से अब रायगढ़वासियों के मन में कोई सकारात्मक उम्मीद बची भी है या नहीं ?
निगम की गद्दी पर पांच सालों से काबिज़ महापौर जानकी काटजू का दावा है कि उन्होंने रायगढ़ को स्वर्ग बना दिया है जबकि भाजपाइयों का आरोप है कि कांग्रेस राज में यह शहर नरक में तब्दील हो गया है । इन दावों-प्रतिदावों में दोनों ओर से कोई प्रतिबद्धता दिखाई नही देती है । आम-जनता भी इन बातों को “बरसाती मेंढकों के टर्राने” से अधिक कुछ भी नही मान रही है क्योंकि विगत वर्षों में इन नेताओं को लेकर जनता का अनुभव अच्छा नही रहा है । वास्तविक तथ्य यह है कि 2014 के निगम चुनाव से पहले कांग्रेस के लोगों ने सत्ताधारी भाजपाइयों पर ” टॉयलेट घोटाले ” और ” डस्टबीन खरीदी ” सहित अनेक मामलों में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए आसमान सिर पर उठा लिया था । जनता ने उनकी बातों पर विश्वास करके बदलाव किया और कांग्रेस की जानकी काटजू को मेयर व जयंत ठेठवार को सभापति की कुर्सी पर बिठा दिया लेकिन कुर्सी पर बैठते ही इन कांग्रेसियों ने भ्रष्ट भाजपाइयों के सारे गुनाहों पर ना केवल पर्दा डाल दिया वरन वे उनके संरक्षक बन बैठे । विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि “टॉयलेट घोटाले ” का मुख्य किरदार इस समय भाजपा के अध्यक्ष\महामंत्री की दौड़ में प्रमुखता से शामिल है ।
ठीक इसी तरह गत विधान-सभा चुनाव से पहले भाजपाइयों ने मेयर जानकी काटजू और कांग्रेस सरकार पर अमृत मिशन योजना, सड़क-नाली निर्माण, सफाई ठेका एवं राशन वितरण में अंधाधुंध भ्रष्टाचार व कमीशन-खोरी किये जाने का आरोप लगाते हुए टॉउन-हॉल में जंगी प्रदर्शन किया था लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार बने हुए एक वर्ष गुजर जाने के बावजूद अब तक नगर-निगम के किसी भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध ना तो कोई जांच बिठाई गई है और ना ही आरोप मढ़ने वाले बड़बोले भाजपा नेताओं ने इस दिशा में कोई भी पहल की है। दरअसल नगर-निगम की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस की मिली-जुली कंपनी लंबे समय से अपना भ्रष्ट कारोबार चला रही है । शहरवासी भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रही इस नूरा-कुश्ती को वर्षों से देख रहे हैं । जनता अब यह अच्छी तरह समझ चुकी है कि चुनाव के समय एक-दूसरे पर गरियाने वाले दोनों दलों के भ्रष्ट और पेशेवर नेता एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं । परस्पर विरोधी दिखने वाले ये नेता टॉउन-हाल की सीढ़ी चढ़ते ही ‘हम प्याला-हम निवाला’ बन जाते हैं । चौबीसों घंटे इनकी गिद्ध नज़र विकास कार्यों के टेंडर, ठेका, खरीदी, नामांतरण और कोटेशन पर लगी रहती है । दोनों दलों के लोग सिंडिकेट बनाकर या तो अधिकांश ठेके हासिल कर लेते हैं या फिर टेंडर खुलते ही ये लोग ठेकेदारों पर भूखे-भेड़ियों की तरह टूट पड़ते हैं । पार्टनरशिप या हिस्सा-बंटवारा के बिना कोई भी काम होने ही नही दिया जाता । मिल-जुलकर सब कुछ एक ही निवाले में डकार जाने के इस अनवरत सिलसिले का नेतृत्व 25-30 वर्षों से निगम में कुंडली मारकर बैठे हुए दोनों दलों के महाबली पार्षद करते हैं । शहर विकास का जज्बा लेकर पार्षद बनने वाले नए लोगों को ये वरिष्ठ शिकारी ही भ्रष्टाचार के गुर सिखाकर अपनी जमात में शामिल कर लेते हैं । अब तो शहर के लोग ये कहने लगे हैं कि नगर-निगम पार्षदों के लिए ठेकेदार बनने व भ्रष्टाचार के गुर सीखाने का ट्रेनिंग सेंटर बन गया है । कांग्रेस-भाजपा की चांडाल-चौकड़ी ने नगर-निगम को शहरी विकास का कार्यालय बनाने की जगह अनैतिक लेन-देन की मंडी बनाकर रख दिया है । यही कारण है कि हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद हमारा रायगढ़ शहर नागरिक सुविधाओं की दृष्टि से एक बदहाल और बदतर शहर बना हुआ है। हर गली में दूषित पर्यावरण जानलेवा बीमारियों को आमंत्रण दे रहा है, सड़कों पर जगह-जगह जाम लग रहे हैं , हर मोड़ पर कूड़े के ढेर लगे रहते है , मध्य शहर का अतिक्रमण यातायात के लिए नासूर बन गया है, सड़कों में गड्ढे दुर्घटनाओं का वायस बने हुए हैं , बेतरतीब नालियों के कारण गंदे पानी की निकासी विकराल समस्या बनती जा रही है , बारिश में जल भराव और डेंगू अब तो हर वर्ष का चलन बन गया है, पेयजल आपूर्ति अपर्याप्त पड़ रही है – गर्मी में कई मोहल्ले टेंकरों की लाइन में खड़े मिलते हैं । नगर-निगम नागरिक सुविधाओं की दृष्टि से फिसड्डी साबित हुआ है लेकिन संपत्ति कर , जलकर, भवन-टेक्स, पानी का मीटर और यूज़र-टेक्स के रूप में जनता पर आर्थिक बोझ डालने के मामले में निगम अग्रणी है ।
इस शहर को यदि सुव्यवस्थित, स्वच्छ और सुविधाजनक शहर में तब्दील करना है तो सबसे पहले जनता को निगम में वर्षों से अड्डा बनाकर बैठे लुटेरे किस्म के नेताओं से मुक्ति दिलानी होगी । शहर के विधायक ओ पी चौधरी विकास का नया मॉडल खड़ा करने में दिन-रात ईमानदारी जुटे हुए हैं लेकिन यदि घपलेबाज और घोटालेबाज़ नेता संगठन और नगरीय निकाय के रास्ते सत्ता के सिर पर सवार हो जाएंगे तो चौधरीजी के सारे किये-कराये पर पानी फिर जाएगा । यह समय की मांग है कि शहर को नया आकार देने से पहिले वे संगठन और नगरीय निकायों से कूड़े-करकट को साफ करें । यह एक दुष्कर चुनौती जरूर है लेकिन ओ पी चौधरी जैसे बहु-आयामी व्यक्तित्व वाले नेता के लिए कोई भी चुनौती बाधा नही बन सकती और इसीलिए जनता को उम्मीद है कि इस बार नगर-निगम और अंचल को कांग्रेस-भाजपा की मिली-जुली कंपनी के भ्रष्टराज से छुटकारा अवश्य मिलेगा । *दिनेश मिश्र*
◆ निगम चुनाव : क्या मिल सकेगा मिली-जुली कंपनी के भ्रष्ट-राज से छुटकारा ?
◆ कोई कार्रवाई नहीं हुई पुराने घपले-घोटालों पर, दोषी अब बन गये बड़े नेता
◆ टॉयलेट घोटाले के मुख्य आरोपी अब जिला भाजपाध्यक्ष और महामंत्री की रेस में
रायगढ़ । नगर-निगम का एक और चुनाव नजदीक आ गया है और शहरवासी फिर एक बार अपने विकास-दूतों का चयन करने जा रहे हैं। यक्ष प्रश्न यह है कि क्या इस चुनाव से अब रायगढ़वासियों के मन में कोई सकारात्मक उम्मीद बची भी है या नहीं ?
निगम की गद्दी पर पांच सालों से काबिज़ महापौर जानकी काटजू का दावा है कि उन्होंने रायगढ़ को स्वर्ग बना दिया है जबकि भाजपाइयों का आरोप है कि कांग्रेस राज में यह शहर नरक में तब्दील हो गया है । इन दावों-प्रतिदावों में दोनों ओर से कोई प्रतिबद्धता दिखाई नही देती है । आम-जनता भी इन बातों को “बरसाती मेंढकों के टर्राने” से अधिक कुछ भी नही मान रही है क्योंकि विगत वर्षों में इन नेताओं को लेकर जनता का अनुभव अच्छा नही रहा है । वास्तविक तथ्य यह है कि 2014 के निगम चुनाव से पहले कांग्रेस के लोगों ने सत्ताधारी भाजपाइयों पर ” टॉयलेट घोटाले ” और ” डस्टबीन खरीदी ” सहित अनेक मामलों में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए आसमान सिर पर उठा लिया था । जनता ने उनकी बातों पर विश्वास करके बदलाव किया और कांग्रेस की जानकी काटजू को मेयर व जयंत ठेठवार को सभापति की कुर्सी पर बिठा दिया लेकिन कुर्सी पर बैठते ही इन कांग्रेसियों ने भ्रष्ट भाजपाइयों के सारे गुनाहों पर ना केवल पर्दा डाल दिया वरन वे उनके संरक्षक बन बैठे । विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि “टॉयलेट घोटाले ” का मुख्य किरदार इस समय भाजपा के अध्यक्ष\महामंत्री की दौड़ में प्रमुखता से शामिल है ।
ठीक इसी तरह गत विधान-सभा चुनाव से पहले भाजपाइयों ने मेयर जानकी काटजू और कांग्रेस सरकार पर अमृत मिशन योजना, सड़क-नाली निर्माण, सफाई ठेका एवं राशन वितरण में अंधाधुंध भ्रष्टाचार व कमीशन-खोरी किये जाने का आरोप लगाते हुए टॉउन-हॉल में जंगी प्रदर्शन किया था लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार बने हुए एक वर्ष गुजर जाने के बावजूद अब तक नगर-निगम के किसी भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध ना तो कोई जांच बिठाई गई है और ना ही आरोप मढ़ने वाले बड़बोले भाजपा नेताओं ने इस दिशा में कोई भी पहल की है। दरअसल नगर-निगम की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस की मिली-जुली कंपनी लंबे समय से अपना भ्रष्ट कारोबार चला रही है । शहरवासी भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रही इस नूरा-कुश्ती को वर्षों से देख रहे हैं । जनता अब यह अच्छी तरह समझ चुकी है कि चुनाव के समय एक-दूसरे पर गरियाने वाले दोनों दलों के भ्रष्ट और पेशेवर नेता एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं । परस्पर विरोधी दिखने वाले ये नेता टॉउन-हाल की सीढ़ी चढ़ते ही ‘हम प्याला-हम निवाला’ बन जाते हैं । चौबीसों घंटे इनकी गिद्ध नज़र विकास कार्यों के टेंडर, ठेका, खरीदी, नामांतरण और कोटेशन पर लगी रहती है । दोनों दलों के लोग सिंडिकेट बनाकर या तो अधिकांश ठेके हासिल कर लेते हैं या फिर टेंडर खुलते ही ये लोग ठेकेदारों पर भूखे-भेड़ियों की तरह टूट पड़ते हैं । पार्टनरशिप या हिस्सा-बंटवारा के बिना कोई भी काम होने ही नही दिया जाता । मिल-जुलकर सब कुछ एक ही निवाले में डकार जाने के इस अनवरत सिलसिले का नेतृत्व 25-30 वर्षों से निगम में कुंडली मारकर बैठे हुए दोनों दलों के महाबली पार्षद करते हैं । शहर विकास का जज्बा लेकर पार्षद बनने वाले नए लोगों को ये वरिष्ठ शिकारी ही भ्रष्टाचार के गुर सिखाकर अपनी जमात में शामिल कर लेते हैं । अब तो शहर के लोग ये कहने लगे हैं कि नगर-निगम पार्षदों के लिए ठेकेदार बनने व भ्रष्टाचार के गुर सीखाने का ट्रेनिंग सेंटर बन गया है । कांग्रेस-भाजपा की चांडाल-चौकड़ी ने नगर-निगम को शहरी विकास का कार्यालय बनाने की जगह अनैतिक लेन-देन की मंडी बनाकर रख दिया है । यही कारण है कि हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद हमारा रायगढ़ शहर नागरिक सुविधाओं की दृष्टि से एक बदहाल और बदतर शहर बना हुआ है। हर गली में दूषित पर्यावरण जानलेवा बीमारियों को आमंत्रण दे रहा है, सड़कों पर जगह-जगह जाम लग रहे हैं , हर मोड़ पर कूड़े के ढेर लगे रहते है , मध्य शहर का अतिक्रमण यातायात के लिए नासूर बन गया है, सड़कों में गड्ढे दुर्घटनाओं का वायस बने हुए हैं , बेतरतीब नालियों के कारण गंदे पानी की निकासी विकराल समस्या बनती जा रही है , बारिश में जल भराव और डेंगू अब तो हर वर्ष का चलन बन गया है, पेयजल आपूर्ति अपर्याप्त पड़ रही है – गर्मी में कई मोहल्ले टेंकरों की लाइन में खड़े मिलते हैं । नगर-निगम नागरिक सुविधाओं की दृष्टि से फिसड्डी साबित हुआ है लेकिन संपत्ति कर , जलकर, भवन-टेक्स, पानी का मीटर और यूज़र-टेक्स के रूप में जनता पर आर्थिक बोझ डालने के मामले में निगम अग्रणी है ।
इस शहर को यदि सुव्यवस्थित, स्वच्छ और सुविधाजनक शहर में तब्दील करना है तो सबसे पहले जनता को निगम में वर्षों से अड्डा बनाकर बैठे लुटेरे किस्म के नेताओं से मुक्ति दिलानी होगी । शहर के विधायक ओ पी चौधरी विकास का नया मॉडल खड़ा करने में दिन-रात ईमानदारी जुटे हुए हैं लेकिन यदि घपलेबाज और घोटालेबाज़ नेता संगठन और नगरीय निकाय के रास्ते सत्ता के सिर पर सवार हो जाएंगे तो चौधरीजी के सारे किये-कराये पर पानी फिर जाएगा । यह समय की मांग है कि शहर को नया आकार देने से पहिले वे संगठन और नगरीय निकायों से कूड़े-करकट को साफ करें । यह एक दुष्कर चुनौती जरूर है लेकिन ओ पी चौधरी जैसे बहु-आयामी व्यक्तित्व वाले नेता के लिए कोई भी चुनौती बाधा नही बन सकती और इसीलिए जनता को उम्मीद है कि इस बार नगर-निगम और अंचल को कांग्रेस-भाजपा की मिली-जुली कंपनी के भ्रष्टराज से छुटकारा अवश्य मिलेगा ।