मोदी का यशो-गान बनाम जनता की फटकार….

(अमृतांश की कलम से…)
रायगढ़ । इस बार के चुनाव परिणामों ने ट्वेंटी फोर बाई सेवन चलने वाले बड़े-बड़े खबरिया चैनलों और हाईटेक डेटा विश्लेषकों की मिट्टी-पलीद करके रख दी है। साथ ही इसने कंप्यूटर पर बैठकर राजनैतिक दलों की स्ट्रेटेजी बनाने तथा नेताओं का भाग्य बाँचने वाले पेशेवर राजनीतिक पंडितों को उनकी असली जमीन दिखा दी है। मगर ऐसा लगता है कि आत्ममुग्ध मोदी ब्रांड भाजपा संगठन और दिन-रात चापलूसी-पूर्ण मैसेज परोसने वाले भाजपा के आई.टी.सेल विशेषज्ञों की नींद शायद अभी तक नहीं खुली है।
केंद्र में मोदीकृत सरकार के शपथ लेते ही मीडिया में मोदी-यशोगान उसी उन्माद के साथ फिर से गूँजने लगा है। महिमामंडन की यह नयी कवायद स्वस्फूर्त नहीं है वरन यह वास्तविक तथ्यों से ध्यान हटाने का एक सुनियोजित भाजपाई हथकंडा है। दरअसल भाजपा हाईकमान चुनाव परिणाम के पीछे छिपे आम जनता के इस कड़े संदेश से मुँह चुराना चाहती है कि सीटों में बड़ी गिरावट भाजपा के विचारधारा की पराजय नहीं है वरन यह मोदीमय भाजपा संगठन और मोदी सरकार की अपनी पराजय है, यह मनमाना आचरण व दंभ से भरे निर्णयों की पराजय है। आने वाले दिनों में इसके बहुत गहरे, व्यापक व दूरगामी दुष्प्रभाव भाजपा को झेलने पड़ सकते हैं। कांग्रेस मुक्त भारत की डींगें हाँकने वाले भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की गलतियों व क्रियाकलापों के कारण भारतीय राजनीति में कांग्रेस तत्व की जोरदार पुनर्वापसी हो गयी है। इतना ही नहीं समाजवादी धड़े को भी नवजीवन मिल गया है। यह नया उभार लम्बे समय तक सालने वाला है। भाजपा जिन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों तक पहुंचना चाहती थी, फिलहाल भाजपा को उससे काफी पीछे धकेल दिया गया है। अतः भाजपा के नीति-निर्धारकों के लिए इस परिणाम की ठीक-ठीक व निष्पक्ष पड़ताल करना जरूरी है।
दरअसल 2014 की जीत के बाद मोदी व अमित शाह की जोड़ी ने सधे हुये ढंग से पार्टी के भीतर अपने प्रतिस्पर्धियों को एक-एक करके ठिकाने लगा दिया और लगभग अपना वर्चस्व कायम कर लिया। नोटबन्दी के विवादित निर्णय के बाद भी 2019 के चुनाव में 303 सीट के साथ मिली भारी विजय ने उन्हें एकक्षत्र नायक के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। इसी बिंदु पर मोदी के नायक से ‘महानायक’ और फिर ‘अधिनायक’ बनने के सफर की शुरुआत हुई। टीम मोदी ने कॉर्पोरेट प्रायोजकों और अमीर दानदाताओं के अकूत संशाधनों का खुलकर इस्तेमाल किया और भारी पूंजी लगाकर पेशेवर इमेज मेकर्स, ओपिनियन मेकर्स, सोशल मीडिया हैंडलर्स और मीडिया संगठनों का एक व्यापक नेटवर्क खड़ा कर लिया। इन्होंने अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुये नरेंद्र मोदी को करिश्माई नेता से आगे बढ़कर सनातन संस्कृति के उद्धारक व ईश्वर के अवतार की तरह प्रस्तुत करने का व्यवस्थित अभियान छेड़ दिया। इसके अंतर्गत चौबीसों घंटे सच्चे-झूठे मैसेज, तरह- तरह के खुशामदी व खिल्ली उड़ाने वाले वीडियो, प्रायोजित बहसों व किस्से-कहानियों की चौतरफा बौछार की जाने लगी। पार्टी व सरकार के अंदर अनुशासन व कसावट के नाम पर सारे अधिकारों का केंद्रीकरण कर लिया गया। केबिनेट से लेकर संसदीय बोर्ड व राष्ट्रीय कार्यकारिणी तक हर जगह विचार-विनिमय व सहमति के द्वारा निर्णय लेने की गुंजाइश पूरी तरह समाप्त कर दी गयी और आदेश थमाये जाने लगे। पेशेवर मैनेजर व नौकरशाह केंद्रित प्रशासकीय ढाँचा और तकनीक आधारित मैनेजमेंट का मॉडल सत्ता व संगठन दोनों स्तर पर लागू कर दिया गया। पूरी तरह से कंपनी राज कायम हो जाने के बाद मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों , सांसदों, विधायकों व प्रादेशिक नेताओं की स्वायत्तता निरस्त कर दी गई। अलग-अलग बिंदुओं पर इन सबके स्कोरकार्ड बनने लगा और इसी आधार पर उनकी क्लास ली जाने लगी। मंत्री बनाये व हटाये जाने लगे। मोदी व मोदी सरकार की उपलब्द्धियों का प्रमोशन करना ही पार्टी के प्रति निष्ठा व सक्रियता का एकमात्र पैमाना बन गया। फौरी निर्णय, फटाफट परिणाम और आक्रमक व हठधर्मी रवैय्या भाजपा की कार्यशैली बनता गया। कार्यकर्ता निर्माण की जगह मोबाइल नम्बर डायल करके पार्टी सदस्य बनाये जाने लगे। इस प्रकार राजनीतिक रूप से अपरिपक्व व लगभग राजनीतिक निरक्षरों की जमात खड़ी करके भाजपा हाईकमान द्वारा भाजपा को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी घोषित करके डंका पीट दिया गया। पार्टी लाइन में प्रशिक्षित पुराने कार्यकर्ताओं की जगह सोशल मीडिया में चापलूसी की अभ्यस्त इस जिंदाबादी भीड़ पर अधिक भरोसा किया जाने लगा। परिणाम यह हुआ कि पार्टी के लिये आधारभूमि बनाने वाला स्वाभिमानी तबका धीरे-धीरे अरुचि से भर गया। कुछ लोग बागी हो गये, कुछ लोगों ने समझौता कर लिया और कुछ लोग हताश होकर किनारे बैठ गये। इस खाली स्पेस का लाभ उठाकर यस-मेन व आधारहीन नेताओं को पार्टी व सरकार के महत्वपूर्ण स्थानों पर बिठाया जाने लगा। सफलता के मद में आकंठ डूबे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने संगठन व सरकार के भीतर हो रहे इस क्षरण को जानबूझकर अनदेखा किया।
ऐसा नहीं है कि विगत दस वर्षों में इस क्षरण के संकेत नहीं दिखाई दे रहे थे। इस कालावधि में सम्पन्न हुये विधानसभा चुनावों में अनेक राज्यों में भाजपा की करारी पराजय ने बार-बार चेताया था कि क्षय हो रहा है लेकिन मोदी-शाह की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने हर पराजय के बाद सनातन संस्कृति को बचाने की चुनौती, बुलेट ट्रेन, सर्जिकल स्ट्राइक, चुनिंदा बड़े व चमकदार निर्माण कार्य , जी डी पी में वृद्धि, रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार, विश्व में भारत का बढ़ता कद, विश्व गुरु का स्थान, धारा 370 उन्मूलन और राम मंदिर आदि का लाऊडस्पीकर बजाकर विरोधी स्वरों का गलाघोंट दिया। हर बार मोदी के राजनैतिक साहस, व्यक्तिगत ईमानदारी व दिन-रात की मेहनत को प्रोजेक्ट करके यह भावुकतापूर्ण नैरेटिव गढ़ दिया गया कि विदेशी षडयंत्र के तहत छप्पन इंची सीने वाले गरीब के बेटे मोदी को घेरे जाने का षड्यंत्र किया जा रहा है। कहावत है कि यदि सफलता को संभाल कर न रखा जाये तो वह अहंकार बनकर आत्मविनाश के मार्ग पर ले जाती है। मोदी सरकार के साथ यही हुआ है। वे अपने एकतरफा प्रभुत्व की चकाचौंध में इस बात को समझने से चूक गये कि रोज-रोज के भाषणों, बयानों, अनर्गल टिप्पणियों व नेताओं के अनावश्यक विषवमन से आम जनता ऊब चुकी है। गरीब जनता महसूस करने लगी कि उनकी रोजमर्रा की समस्याओं का पुख्ता समाधान करने की बजाय वोट पाने हेतु कतिपय छोटे-छोटे लाभ देकर उन्हें नागरिक समाज की बजाय लाभार्थी समूह में तब्दील किया जा रहा है। सरकारी लाभों से वंचित नौकरीपेशा व मध्यमवर्गीय तबका अब यह मानने लगा है कि राजनीति व्यवसाय बन चुकी है, जनसेवा के नाम पर तमाशा अधिक हो रहा है। समाजकल्याण व सामाजिक सुरक्षा के नाम पर मुफ्त बाँटी जाने वाली सुविधाओं व बेलगाम भ्रष्टाचार के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ की भरपाई मध्यमवर्ग पर नाना-प्रकार के टैक्स बढ़ाकर की जा रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, कचरा निपटान, बिजली आदि बुनियादी सुविधाओं में बेतहाशा शुल्क वृद्धि के बोझ ने मध्यवर्ग का बजट बिगाड़ दिया है। मनमाना ढंग से जी एस टी वसूली और बैंक की सीढ़ी चढ़ने-उतरने पर भी शुल्क जैसे प्रावधानों से व्यापारी हलाकान है। इधर बढ़ती महंगाई को विश्व में हो रही हलचल का परिणाम बताकर सरकार चालाकी से अपनी अक्षमता को छिपा लेती है। केंद्रीय एजेंसियों की इरादतन छापामार कार्यवाही के जरिये समूचे विपक्ष को भ्रष्ट सिद्ध करने की सिलसिलेवार कार्यवाहियों ने तटस्थ बुद्धिजीवियों के बीच मोदी सरकार की साख गिरायी है।
मौजूदा परिणाम उपरोक्त सभी बिंदुओं के कारण उपजे मोहभंग की आंशिक फलश्रुति है। जनता को अब अधिक समय तक कोरे राष्ट्रवाद के नारों से नहीं बहलाया जा सकेगा। आम जनता अपने रोजमर्रा की जरूरतों व समस्याओं की चिंता करने वाली और वास्तविक अर्थों में उनका निराकरण करने वाली सरकार व राजनीति चाहती है। मोदी सरकार को यह समझना होगा कि आमजनता की बुनियादी समस्याओं के कारगर समाधान के बिना विकसित भारत की कल्पना केवल थोथा नारा हैं। यदि समय रहते इस ओर ध्यान देकर कार्यशैली में तद्नुरूप बदलाव नहीं किया गया तो अगली बार देश की जनता उन्हें समूल उखाड़ देगी। याद रखना चाहिये कि भारत की जनता ने पूर्व में इससे भी ज्यादा ताकतवर सरकारों को धूल चटाकर उन्हें लोकतंत्र की असली ताकत का बखूबी एहसास कराया है। किसी को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिये कि केवल लोक-लुभावन नारों से जनता को अधिक समय तक ठगा जा सकता है।