चूक तो हो गई है ओ पी चौधरी से …!

रायगढ़ । छत्तीसगढ़ में कोल माफियाओं की बेधड़क सक्रियता को लेकर प्रदेश भाजपा मंत्री व पूर्व आई ए एस ओ पी चौधरी ने विगत दिनों एक ट्वीट व वीडियो जारी किया था । इस वीडियो के फर्जी होने के आरोप में पुलिस ने उनपर एक एफआईआर दर्ज किया है । उक्त घटना को लेकर इन दिनों भारी बवाल मचा हुआ है । चूंकि रायगढ़ जिला भाजपा को ओ पी चौधरी अपने कंधों पर ढो रहे हैं । अतः भाजपाइयों की सर्वाधिक चिल्ल-पों रायगढ़ जिले में देखी जा रही है । प्रशासनिक हलचल व मीडिया तक आ रही सूचनाओं के अनुसार वह वीडियो वास्तव में फर्जी है । इधर ओ पी चौधरी की यह सफाई कि वीडियो पहले से वायरल था , स्वयं इस बात की चुगली कर रहा है कि वीडियो प्रमाणिक नही है । इस तरह ओ पी से एक बड़ी चूक हो गई है । इसने उनकी विश्वसनीयता पर भी प्रश्न-चिन्ह खड़ा किया है । ओ पी के पक्ष में जिला भाजपा द्वारा किये जा रहे अतिरेक पूर्ण हंगामे को ओ पी के इशारे पर किया जाने वाला ” डैमेज कन्ट्रोल ” का प्रयास माना जा रहा है ।
कलेक्ट्री छोड़कर राजनीति में कूद पड़े ओपी चौधरी गत चुनाव में उमेश पटेल के हाथों पराजित होने के बाद अब नए सिरे से अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं । इस प्रयास में वो हाइपर एक्टिव हो गए हैं और राज्य सरकार पर ताबड़-तोड़ हमले कर रहे हैं । प्रदेश स्तर पर स्थापित होने के लिए एक सधी हुई रणनीति के तहत वे प्रायः मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को अपने निशाने पर रखते हैं । हालांकि इस कोशिश में वे कई बार बड़बोले भी हो जाते हैं तथापि वे सुर्खियां बटोरने में सफल रहते हैं । ताज़ा ट्वीट में कोल माफियाओं के बहाने उन्होंने सरकार पर करारा तंज़ कसा है । यूं तो प्रदेश की कोयला खदानों में माफिया-राज कोई आज की बात नही है लेकिन इसमें भी कोई दो-मत नही है कि भूपेश सरकार के दौर में सभी प्रकार के माफियाओं को खुली छूट मिली हुई है । इस लिहाज से ओ पी की ट्वीट में सत्यता है लेकिन अपने कथन के समर्थन में संदिग्ध वीडियो जारी करके वो गंभीर गलती कर बैठे हैं ।
राजनीति में बातों की प्रामाणिकता का विशेष महत्व होता है । जब नेता की बातों में सत्यता , प्रमाणिकता और गंभीरता होती है तभी वह आम लोगों में ऐसी विश्वसनीयता हासिल कर पाता है कि उसकी एक आवाज़ में जनता उसके पीछे हो लेती है । इस तरह की विश्वसनीयता हासिल कर चुके किसी भी नेता के द्वारा आधा सच व आधा झूठ मिलाकर कहानी गढ़ देना क्षम्य नही माना जा सकता । इस तरह से लोगों को गुमराह करके अपना पक्ष मजबूत करने की छूट किसी को नही दी जा सकती । प्रायः श्री चौधरी पुख्ता अध्ययन के आधार पर परिपक्वता के साथ अपनी बातें रखते हैं । अपने व्यक्तित्व को निखारने व लोगों तक पहुंच बनाये रखने के लिए वे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का भी बेहद चतुराई के साथ प्रयोग करते हैं । उनके साथ आई ए एस का प्रभावोत्पादक तमगा भी जुड़ा हुआ है । इन सब कारणों से उनकी बातों को स्वतः स्वीकार्यता व सुर्खियां मिल जाती है । मीडिया में सतत मिलने वाली सुर्खियां व जिन्दाबादी भीड़ कई बार नेता को अति आत्मविश्वासी व लापरवाह बना देती है । अति आत्मविश्वास , लापरवाही व आत्म मुग्धता के कमजोर क्षणों में वह कोई ऐसी गलती कर बैठता है कि उसके लिए पछतावे के अलावा कोई विकल्प शेष नही रह जाता । ओ पी चौधरी के साथ संभवतः ऐसा ही कुछ हुआ है ।
ओ पी चौधरी का नाम भाजपा के प्रदेश स्तर के नेताओं में शुमार है । उनके कार्यशैली को देखकर एकबारगी पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व आई ए एस अजीत जोगी की याद आ जाती है । वही तेज़ी , वही आक्रामकता , वही तेवर , वही कर्मठता और संभवतः लक्ष्य भी वही है। यदि अपनी राजनीति के इस आरंभिक दौर में ओ पी चौधरी ने कहीं अजीत जोगी का बातों को ट्वीस्ट करने का तिकडमी व गलत तरीका अपना लिया तो उनका सियासी सफर शुरू होते ही समाप्त हो जाएगा । अजीत जोगी की तरह अत्यधिक तेज़ भागने की कार्यपद्धति यद्यपि उन्हें कुछ आरंभिक सफलता अवश्य दिला सकती है लेकिन यह आशंका भी साथ चल रही है कि जोगी की तरह वे भी पार्टी के भीतर व बाहर राजनैतिक रूप से अश्पृश्य ( अछूत ) ना बन जाएं ! यदि ऐसा हुआ तो यह ना केवल उनका , ना केवल भाजपा का वरन प्रदेश की जनता का एक बड़ा नुकसान होगा। उपरोक्त घटना ने उन्हें आत्म अवलोकन का इशारा दिया है । इस संकेत को समझकर उन्हें आवश्यक बदलाव करने चाहिए ताकि यह क्षेत्र उनकी ऊर्जा , उनकी प्रतिभा व उनके अभिनव प्रयोगों के लाभ से वंचित होकर ना रह जाये…!
दिनेश मिश्र