महापौर की दौड़ में फिलहाल जीवर्धन चौहान बहुत आगे….
■ गुटबाज़ी व अव्यवस्था के कारण जानकी काटजू की नैया डांवाडोल
■ जेठूराम की दमदार उपस्थिति से कांग्रेस के तीसरे नंबर में खिसक जाने का खतरा
रायगढ़ । नगर-निगम चुनाव को लेकर रणभूमि सज चुकी है । नाम वापसी के बाद महापौर पद के लिए अब सात उम्मीदवार मैदान में हैं । आने वाले दस दिनों में शह और मात का खेल पूरे शबाब पर रहेगा परंतु आरंभिक तौर पर यह कहा जा रहा है कि मुख्य मुक़ाबला भाजपा , कांग्रेस और निर्दलीय जेठूराम के मध्य ही होगा । देखना यह होगा कि कमल, पंजा और कांच का गिलास छाप के बीच की कशमकश क्या रुख अख्तियार करती है ।
इस चुनावी संग्राम में भाजपा ने ताम-झाम व लाइम-लाइट से दूर पार्टी के लिए समर्पित चाय बेचने वाले , गरीब के बेटे जीवर्धन चौहान को प्रत्याशी बनाकर पहले ही बड़ा मास्टर-स्ट्रोक लगा दिया है । जीवर्धन के नाम की घोषणा होते ही वह रातों-रात शहर वासियों का चहेता बन गया है । हर तरफ इसे भाजपा का सही निर्णय बताया जा रहा है और जीवर्धन के पक्ष में जनसमर्थन हर बढ़ते दिन के साथ ही बढ़ता जा रहा है । ओ पी चौधरी द्वारा एक वर्ष के अल्प कार्यकाल में ही करोड़ों रुपयों के विकास कार्यों की जो झड़ी लगाई गई है उसने इस चुनाव को काफी हद तक भाजपा के पक्ष में झुका दिया है । जहां तक कांग्रेस उम्मीदवार जानकी काटजू का प्रश्न है तो उनके पास निगम चलाने का पांच वर्ष का अनुभव है और उन्हें पहचान का संकट भी नही है । इसके अतिरिक्त शहर में कांग्रेस का अपना एक तयशुदा वोट बैंक भी है । इन सबके बावजूद उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की तीव्र लहर देखी जा रही है । कांग्रेस में गुटबाजी चरम सीमा पर है । कई फाकों में बंटी कांग्रेस में अव्यवस्था का यह आलम है कि उनके दो पार्षद प्रत्याशियों ने अपना नामांकन वापस ले लिया और कांग्रेसी टापते रह गए । एक तो पहले ही जेठूराम जैसे सशक्त दावेदार ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था वहीं टिकट वितरण के बाद कई वार्डों में उपजे तीव्र असंतोष ने कांग्रेस की हालत पतली कर रखी है । इधर जेठूराम मनहर ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ताल ठोंक दी है । जेठूराम ने जानकी काटजू के पति अमृत काटजू के विरुद्ध अपने बेटे को भी वार्ड नं. 4 से पार्षद प्रत्याशी के रूप में उतारकर यह संकेत दे दिया है कि वे एक सोंची-समझी योजना व सधी हुई रणनीति के तहत चुनाव मैदान में हैं । जेठूराम भी शहर व निगम की राजनीति के लिए एक जाना-पहचाना चेहरा हैं । उनके महापौर रहते शहर ने आशातीत प्रगति की थी । उन्हें एक गंभीर व सुलझे हुए नेता के रूप में देखा जाता है । कांग्रेस और भाजपा के पूर्व पार्षदों व वर्तमान प्रत्याशियों से जेठूराम के प्रत्यक्ष रिश्ते है साथ ही दोनों दलों के नेताओ व शहर के प्रभावी लोगों से भी जेठूराम का गहन संपर्क है । जेठूराम चुनाव की बारीकियों पर अच्छी पकड़ रखते हैं । राजनैतिक हल्कों में यह चर्चा है कि टिकट वितरण के पश्चात कांग्रेस और भाजपा में उभरे असंतोष को भुनाने में जेठूराम सक्षम हैं तथा अंदरूनी तौर पर उन्हें शहर के मजबूत लोगों का समर्थन हासिल है । इसलिए जेठूराम कांग्रेस को पीछे धकेल कर दूसरे स्थान पर आ जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नही होगी । शहर के लोग पूर्व में भी मातूराम अग्रवाल और मधुबाई किन्नर को चुनकर कांग्रेस व भाजपा को जोरदार झटका दे चुके हैं । अतः आने वाले दिनों में चुनाव के रोचक हो जाने से इंकार नही किया जा सकता । बहरहाल, इस समय तो बाज़ी पूरी तरह भाजपा के नियंत्रण में है और जीवर्धन चौहान एक बड़ी जीत की ओर बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं । यह तो समय ही बताएगा कि जेठूराम और जानकी काटजू के बीच खंदक की लड़ाई किस मुक़ाम तक पहुंचती है । *दिनेश मिश्र*